बुधवार, 21 दिसंबर 2011

चौधरी (USA) जी के घर में भी एक तहरीर चौक जिंदा होने लगा है ~~~~~~~~~~!!

11 सितम्बर का हमला केवल Twin towers या Pentagon पर ही नहीं हुआ था, वो योजनाबद्ध हमला था, और उस हमले ने उस दिन से ही अमेरिका की अर्थ व्यवस्था की कमर तोड़ डाली थी, मगर अमेरिका ने अपनी  तबाह हुई अर्थ व्यवस्था को दुनिया से छुपा कर अपनी झूठी चौधराहट का डंका बजाना जारी रखा, और उस हमले के बाद वही किया जो कि अल कायदा चाहता था, हमले और हमले,  और सैन्य खर्च, कंगाली में चौधरी जी  का  जितना आटा गीला हो जाए उतना ही अच्छा, और अमेरिका ने किया भी वही, फ़ौरन ही अफगानिस्तान पर हमला, और फिर इराक पर हमला, अपनी चौपट अर्थ व्यवस्था को सँभालने के बजाय अमेरिका का पूरा ध्यान अब हमलों पर ज्यादा था, और फिर अपनी साख बनाये रखने के लिए क़र्ज़ पर क़र्ज़ लेकर उसने दुनिया को यह झूठा सन्देश दिया कि सब ठीक है, यानी उधार लेकर घी पीने वाली बात हो गयी, 20 मार्च 2011 को इराक पर अमेरिकी हमले के पांच साल पूरे हो चुके हैं, और इस अभियान में बकौल अमेरिकी अर्थशास्त्री और 2001 में अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार विजेता जोसेफ यूजीन स्टिगलिट्ज़ का आकलन है कि मोटे तौर पर इस युद्ध से अकेले अमेरिका पर तीन ट्रिलियन (3000 अरब) डॉलर का बोझ पड़ा है, उन्होंने कहा है कि इराक युद्ध से पड़े असर का सीधा रिश्ता अमेरिका के मौजूदा आर्थिक संकट से है। यही वह पेंच है जिसको समझने की ज़रूरत है।
जैसे, state children's health insurance program (SCHIP) के प्रस्तावित विस्तार की सालाना लागत 7 अरब डॉलर है, जबकि अमेरिका सरकार इतनी रकम इराक में दो हफ्ते में खर्च कर दे रही है। युद्ध में चार दिन के खर्च से अमेरिका में बच्चों की देखभाल के कार्यक्रम पर दो अरब डॉलर की सब्सिडी दी जा सकती है। इसलिए अमेरिकी अवाम अगर युद्ध का विरोध कर रहा है, तो यह पूरी तरह जायज है। इसके अलावा साथ में अमेरिका में केंद्रीय बैंक, शेयर और प्रॉपर्टी बाज़ार के दल्लों, नियामक संस्थाओं और इस हाउसिंग बुलबुले को पालने वाले और बेंकों को डुबो कर या दीवालिये घोषित करने वाले बेन्कर्स भी बराबर के दोषी हैं, जिन्होंने अमेरिका कि डूबती अर्थ व्यवस्था कि नाव में कई और छेद कर डाले !

अब कुल मिलकर बात यहाँ तक आ पहुंची है कि अरब देशों में, जैसे...मिश्र, लीबिया, यमन, सीरिया, ट्यूनिसिया, बहरीन, जैसे देशों में  प्रदर्शन, सत्ता परिवर्तन, वहां के देशों कि व्यवस्था परिवर्त और आक्रोशित जन जागरण को अपना खुला समर्थन देने वाला अमेरिका आज खुद ही उस आक्रोश कि आग में झुलसना शुरू हो गया है, अमेरिका ने कभी नहीं सोचा होगा कि ..अरब देशों में उसके द्वारा प्रायोजित सत्ता परिवर्तन या व्यवस्था परिवर्तन की लपटें खुद उस तक पहुँच जायेंगी...अमेरिका के न्यूयार्क शहर में " ऑक्युपाई वॉल स्ट्रीट प्रोटेस्ट " बैनर के तहत 20 हजार प्रदर्शनकारियों ने वॉल स्ट्रीट से कुछ दूर स्थित प्राइवेट पार्क जुकाती में अपना शिविर लगाया है,  अमेरिका में भी एक तहरीर चौक धीरे धीरे तैयार होने लगा है,  और हज़ारों लोग अपनी अपनी किताबें, लेपटोप, खाना, मोबाइल, और दवाइयां लेकर डट गए हैं,  और 4 /10 /2011 को  न्यू यॉर्क शहर में पुलिस ने 'ऑक्युपाई वॉल स्ट्रीट प्रोटेस्ट' के 700 से अधिक आंदोलनकारियों को ब्रुकलीन ब्रिज के पास गिरफ्तार किया है। इन लोगों ने social networking sites को ही अपना हथियार बनाया है, इनका आक्रोश इस आर्थिक दीवालिये पन की और जा रहे  देश की आर्थिक नीतियों और बेरोज़गारी और मूलभूत सुविधाओं की कमी के लिए है, अब देखना यह है कि अमेरिका खुद इस आर्थिक दीवालियेपन और साथ ही जानाक्रोश द्वारा तैयार किये गए " ऑक्युपाई वॉल स्ट्रीट प्रोटेस्ट " के रूप में पैदा हुए तहरीर चौक से कैसे निबटेगा.....??

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें