बुधवार, 21 दिसंबर 2011

देश में फांसी की सजा और दया याचिका के बीच रोज़ मरते और जीते आरोपी ~~~!

देश में फांसी की सजा पाए लोगों की  दया याचिकाओं पर होने वाले राजनैतिक पैंतरेबाजी  के कई शो शुरू हो चुके हैं,  अफज़ल गुरु,  कसाब की , भुल्लर, और राजीव गाँधी के हत्यारों की भी याचिका सालों से धूल खा रही है,  ....मेरा मानना है की माननीय राष्ट्रपति जी को दया याचिका भेजने का अधिकारी केवल भारतीय नागरिक ही होना चाहिए, इसके अलावा विदेशी नागरिक (जैसे कसाब)  के केस में सर्वोच्च न्यायलय द्वारा दी गयी फांसी के मुलजिम को एक हफ्ते के अन्दर लटका दिया जाए, और दूसरी बात यह की दया याचिका के उत्तर की भी एक मियाद हो जैसे एक महीने की, इस दौरान यदि दया याचिका स्वीकार हो जाती है तो ठीक, अन्यथा...एक महिना गुजरने के पश्चात यह याचिका स्वत: ही रद्द मानी जाए, और 32 वें दिन उस मुलजिम को फांसी पर लटका दिया जाए,  देश के कानून विदों और मंत्रियों को इस दया याचिका के दायरे, और लागू करने की मियाद सहित सभी बातों को एक तार्किक नियम और कानून की सीमा में लाना चाहिए, और ऐसे देश विरोधी अपराधियों के लिए fast track अदालतें बनाई जाएँ, ताकि.. तुरत फुरत ऐसे अपराधियों को अंजाम तक पहुँचाया जाए ! आज के दौर में जहाँ ज़्यादातर देशों में फांसी की सजा तकरीबन ख़त्म की जा चुकी है, हमारे देश में यह लागू ही नहीं है, बल्कि एक गंभीर सजा को एक तमाशा भी बना कर रख दिया गया है, संविधान निर्मातों ने कभी नहीं सोचा होगा कि इस मानवीय पहलू वाली दया याचिका को एक समय में तमाशा बना कर रख दिया जाएगा...कैसी विडम्बना है कि कोई  फांसी कि सजा पाया अपराधी 11 सालों तक रोज़ अपनी मौत की आहट से कांपता हुआ सोता है, और सुबह डरता हुआ उठता है...फांसी जैसी सजा के तमाशा न बनाया जाए और सम्बंधित कानून का सही पालन हो ..ऐसे में  कानून की सख्ती और Implementation अपने देश में बहुत ज़रूरी हो गया है...!!

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