बुधवार, 21 दिसंबर 2011

महंगाई और भ्रष्टाचार पर चीख पुकार~~~क्या केवल वोट लेने के हथियार ??

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। यह भाजपा के सबसे बड़े जनाधार वाला प्रान्त माना जाता है। रथयात्रा के माध्यम से इन्होंने हर वर्ग को संदेश देने का प्रयास किया कि हमारी पार्टी पर धर्मान्धता की बात गलत है अर्थात हम धर्म सापेक्ष नहीं, धर्म निरपेक्ष हैं। वहीं लंबे समय बाद पार्टी में वापस आईं साध्वी उमाभारती, जिन्होंने उत्तर प्रदेश चुनाव की कमान भी संभाली है, वह राम का नारा रटते नजर आ रही हैं। पार्टी में इस तरह की राजनीति को क्या कहेंगे। कांग्रेस ने  राहुल गांधी के ज़रिये अपनी पूरी ताक़त झोंक दी है,  समाजवादी पार्टी हो या बहुजन समाजपार्टी सभी का यही हाल है। महंगाई, भ्रष्टाचार की निंदा तो सभी कर रहे हैं, लेकिन इसके समाधान का रास्ता बताने में असमर्थ हैं। दक्षिण भारत के दल हों या उत्तर के, सभी का यही हाल है। कहने का तात्पर्य यह कि इन मुद्दों को लेकर बढ़ रही अनिश्चितता की स्थिति से जनता को कोई रास्ता सूझता नजर नहीं आ रहा है। महंगाई या भ्रष्टाचार का मुद्दा राजनीतिक दलों के लिए केवल वोट का मुद्दा बनकर रह गया है। आखिर इससे निजात कैसे मिले, यह एक अहम प्रश्न बना हुआ है। सवाल उनका है जो दो जून की रोटी के लिए मोहताज हैं। महंगाई के फंदे उनके सिर पर कसते जा रहे हैं। बेईमानो की पूंजी बढ़ रही है और ईमानदार का खून चूसा जा रहा है।

अब तक हुए आन्दोलन से यह स्पष्ट हो गया है कि किसी भी राजनीतिक दल ने इन दोनों "महारोग" (महंगाई और भ्रष्टाचार)  के अंत के लिए कोई महत्वपूर्ण कदम नहीं उठाए हैं। इसका कारण भी स्पष्ट है। यदि भ्रष्टाचार खत्म हुआ तो अधिकांश की राजनीति की दुकान भी बंद हो जाएगी। पोल खुलेगी और समाजसेवा के नाम पर राजनीति करने वाले लोगों के मुंह पर लगी कालिख उनका व उनके दल का पीछा नहीं छोड़ेगी। यह है महान भारत देश और यहां के राजनीतिक दलों की स्थिति। देश को चलाना है तो सभी राजनीतिक दलों को अपना स्वार्थ त्यागना होगा। यह भावना कैसे आएगी, यह भी इन राजनेताओं पर ही निर्भर करता है, आगे आगे देखिये होता है क्या ~~~~~!!

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